बात तब की हे जब में मिलिट्री Antrwasna स्कूल से बाहरवी क्लास पड़ने के बाद अपने शहर लोटा था और वंहा के कॉलेज में एडमिशन ले लिया था। मेरे पापा रवि शर्मा[36 ] एक मध्यमवर्गीय बिज़नेस मेन थे ,मेरे परिवार में मेरी माँ ऊषा शर्मा [34 ]और मुझसे ३ साल छोटी बहन जूही थी।
हमारा अपने शहर में 2 बैडरूम का एक छोटा सा मकान था ,दोनों बैडरूम आमने सामने थे और दोनों के बीच में एक ओपन स्पेस थी जिसमे एक टॉयलेट और यूरिनल्स बना हुआ था ,दोनों बैडरूम में एक एक खिड़की भी थी। मेरे मॉम डैड एक बैडरूम शेयर किया करते थे और में और मेरी सिस जूही एक बैडरूम में रहा करते थे। दोनों बैडरूम में अटेच बाथरूम भी थे। ओपन स्पेस से एक सीढ़ी छत पर जाती थी ,गर्मी के दिनों में रात को जब लाइट चली जाती थी तो हम छत पर भी जाकर सो जाते थे।
कुल मिलकर हमारी बड़ी खुशहाल फॅमिली थी ,मॉम पुरे परिवार का अच्छी तरह से धयान रखती थी और हमारी सब जरूरतों को भी पूरा करती थी ,7 साल मिलिट्री स्कूल में पढ़ते समय साल में 1 -2 बार ही घर आना होता था तो सारा समय मेरी आवभगत में ही बीत जाता था जूही तब छोटी भी थी इसलिए हम दोनों के बीच एक दूरी हमेशा बनी रही। ,
क्यूकी में शुरू से मिलिट्री स्कूल के कड़े अनुशाषण के बीच पड़ा लिखा था ,इस लिए दुनियादारी की बातो से बिलकुल अनभिज्ञ था,सेक्स की बाते दोस्त वगेरा किया करते थे लेकिन जब में घर लोटा तब तक में महिला जनांगो के बारे में जानता भी नही था। कुछ बचपन की यादे जरूर थी जैसे उन दिनों मेरी बुआ अपनी बड़ी लड़की यानि मेरी कजिन स्वाति को लेकर आई हुई थी सर्दी के दिन थे। स्वाति मुझसे ३ साल बड़ी थी और ये समझिए उसकी जवानी की शुरुआत ही थी ,और हम बच्चे थे क्यू की तब हमारा लंड खड़ा तो होता नही था और सब उसे नूनी नूनी कहते थे।
रात को जब हम सब रजाई में बैठे थे और स्वाति मेरे समीप ही बैठी थी ,अचानक मुझे लगा की स्वाति का एक हाथ मेरी निकर में से होते हुए मेरी नूनी तक जा पंहुचा हे और वो उसे पकड़ कर सहला रही हे। मुझे तो कोई असर होना ही नही था इसलिए स्वाति नूनी को पकड़ कर कभी दबाती रही कभी मसलती रही लेकिन में बेअसर बैठा रहा।
थोड़ी देर में स्वाति ने मेरा हाथ पकड़ा और उसे अपनी चूत तक ले गयी। में बहुत छोटा था पर इतना जरूर जनता था की ये लड़कियों के पेशाब करने की जगह हे और इसे चूत कहते हे। उसने मेरे हाथ की एक अंगुली को पकड़ा और उसे अपनी चूत की उस जगह पर ले जाकर टिका दिया जो मटर के दाने की तरह उभरा हुआ था। स्वाति ने अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़ा हुआ था और वो मेरे हाथ से उसकी उस जगह को सहला रही थी। थोड़ी देर में मुझे लगा की मेर अंगुली गीली हो गयी हे मेने समझा स्वाति ने पेशाब कर दिया हे ,मुझे बड़ी नफरत सी हुई और में उठकर सीधे बाथरूम गया और अपना हाथ कई बार साबुन से धोया।
एक दो दिन फिर में स्वाति से दूर भागता रहा लेकिन एक दिन फिर में सुबह उसकी गिरफ्त में आ गया ,घर के लोग कंही बाहर गए हुए थे और में और स्वाति ही घर पर थे तब स्वाति मेरे पास आई और कहा की रोहित मेरे पास आ तुझे एक खेल दिखती हु।
स्वाति ने फ्रॉक को उप्पर किया और अपनी अंडरवियर उतारा और जमीन पर टाँगे चौड़ी कर बेठ गई ,उसने मुझसे भी कहा की में निकर उतार दू और उसके सामने आकर बेठ जाऊ। हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठ गए उसने फिर से मेरी नूनी पकड़ ली और मेरा हाथ ले जाकर चूत के उस जगह पर लाकर टिका दिया जो उभरा हुआ था।
मेने तब पहली बार उसकी चूत देखि कुछ पलो के लिए। एक लकीर सी मुझे दिखाई दी बस। थोड़ी देर हम ऎसे ही बैठे रहे और फिर से मेरा हाथ गीला
हुआ और में अपना निकर सँभालते हुए बाथरूम भगा और फिर से साबुन से अपने हाथ धोये।
बस स्वाति से उस समयतो ये ही २ मुलाकाते हुई,लेकिन पहली चूत मेने उसी की देखी।
मेरी मॉम को में हमेशा आदर की दृष्टी से देखता आया था ,उनके सलीके से रहने का तरीका उनका पहनावा हमेशा से गरिमा मय रहा करता था। जूही भी अधिकतर घर में पायजामा या सलवार सूट में हे रहती थी ,स्कूल में उसकी ड्रेस में स्कर्ट और टीशर्ट हुआ करती थी। लेकिन घर में वो कमी से ही स्कर्ट पहनना पसंद करती थी।
डैड का स्वभाव भी खुश मिजाज था और रात को आने के बाद वो हमारे साथ काफी समय बिताया करते थे ,लेकिन जब में इस बार घर आया तो देखा की डैड के मुह से बदबू सी आती रहती थी ,मुझे बाद में पता चला की वो अब रोजाना ड्रिंक करने लगे थे ,लेकिन ड्रिंक के बाद भी वो काफी सयंत रहते थे ,कभी वो जब ज्यादा ड्रिंक कर आते तब वो सीधे बैडरूम में चले जाते ,मॉम हमें ये समझा देती की तुम्हारे डैड थके हुए हे सीधे सोने चले गए हे। में और जूही डिनर कर सीधे अपने बैडरूम में चले आते ,दोनों के दो हिस्सो में सिंगल बेड लगे हुए थे में अपने बेड पर सो जाता और वो अपने बेड पर। हम दोनों के बीच कोई ज्यादा बात नही होती थी।
मेरा कॉलेज अब सहशिक्षा का था और मेरे पास साइंस थी इसलिए पहली बार में लड़कियों का इतना झुरमुट देखता तो में अपने बदन में तरंगो का ज्वार सा उठता महसूस करता और जब कभी लैबोरेट्री में किसी लड़की के चलते फिरते बूब्स टकरा जाते या हिप्स पर हाथ टच हो जाता तो मेरा पूरा शरीर धनुष की तरह तन जाता। लेकिन संस्कार ,तहजीब के चलते में कभी कोई गलत चीज सोच ही नही पाया।
यहाँ मेरी दोस्ती वरुण से हुई ,वरुण के डैड भी शहर के रईसों में से थे वरुण की खासियत ये थी की पढ़ने में भी होशियार था तो हरामी भी नंबर 1 का था। में इंग्लिश माध्यम और मिलिट्री स्कूल से पढ़कर आया था तो चुदाई को फ़क ,चूत को वेजिना ,लंड को पेनिस चूतड़ को बट्स बोला करता था लेकिन वरुण ऐसा नही था ,वो सीधे सीधे बूबे चूत लंड गांड चुदाई जैसे शब्दो का यूज़ किया करता था। मुझेअजीब भी लगता था ,वो किसी भी राह चलती लड़की को देख कर कह दिया करता था ,केसी गांड मटका कर चल रही हे ,या इसके बूब्स तो क़यामत ढा रहे हे ,इसकी चूत तो पाव की तरह फूल रही हे आदि आदि। उसने मुझे बताया की लड़कियों का कॉलेज में जो टॉयलेट हे उसके रोशनदान में से अंदर देखा जा सकता हे। रोशनदान के नीचे उस जैसे खुरापाती लड़को ने पत्थर लगा कर ऊंचाई की हुई थी। पर रोशनदान में से लडकिया जब पेशाब कर के खड़ी हुआ करती थी कुछ सम य के लिए उनकी पेंटी और गांड दर्शन ही किया जा सकता था या पेशाब करते समय चूत में से जो सीटीओ की आवाज आया करती थी उनको सुना जा सकता था.
सही मायनो में तो वरुण के साथ मुझे कई बाते सीखने को मिली ,उसका सीधा सीधा फंडा था की चूत चुदाई करनी हो या किसी औरत या लड़की को नंगा देखना हो तो शुरआत अपने घर से करो। वो कहता था की अपनी मॉम या सिस को आसानी से नंगा भी देखा जा सकता हे और चोदा भी जा सकता हे। आप रंडियो को चोदने जाते हो जबकि आप घर में रंडिया तैयार कर सकते हो।वो तो कहता था की उसने अपनी कई कजिन सिस्टर की चूत की सील तोड़ी हे और अब उसकी नजर अपनी मॉम और सिस्टर पर हे।
वरुण मुझे अक्सर अपनी बाइक पर कच्ची बस्तियों ,या पुटपाथों पर रहने वालो के यहाँ घूमने ले जाया करता था जंहा हमें कई महिलाओ के बूब्स तो देखने को मिल ही जाया करते थे वो कहता था की कभी अपनी मॉम या सिस की ब्रा पेंटी हाथ में लेकर देखना तेरा लंड अपने आप पानी छोड देगा। धीरे धीरे में उसके घर जाने लगा और कभी कभी हम दोनों एक दूसरे का लोडा पकड़ कर हिला कर वीर्य निकालने लगे।
न चाहते हुए भी में अब कई बार मॉम और जूही की चड्डी और ब्रा को देखने की कोशिश करने लगा ,सुबह बाथ के बाद वो अपने कपडे जब सुखाती तब वो अपने अंडर गारमेंट्स सलवार सूट या पेटीकोट साड़ी के निचे सुखाती ,में जब भी अकेला होता उन दोनों की ब्रा और चड्डी निकाल कर देखता ,उन्हें मसलता उन्हें सूंघता ,उसमे से जो खुशबु आती वो मेरे लोडे को खड़ा कर देती। जूही की चड्डियां बहुत छोटी होती और कभी कभी उनमे आगे कोई दाग भी बना होता ,या कई बार झांटो के बाल भी लगे मिलते तो वो मेरी उतेजना को और आगे बड़ा देते।
कभी कभी में आसपास की छतो पर भी नजर डाल लेता तो कई जगह ब्रा सूखने को मिलती तो कई जगह चड्डियां। यदि फूलो के प्रिंट वाली या शोख कलर की चड्डियां सूखती हुई मिलती तो में अंदाज लगा लेता की ये किसी कमसिन कन्या की चड्डी हे और अगर सफ़ेद ब्रा सूखती मिलती तो अंदाज लगा लेता ये किसी आंटी की होगी ।
अब में रूम में भी जूही और मॉम की चड्डियां और ब्रा को तलाशने लगा ,उनको चुपचाप अकेले में ले जाता और उन्हें अपने लोडे के सुपारे पर लगाता तो लोडा रॉकेट की तरह हो जाता। कई बार में मॉम और जूही की चड्डियां अपनी दोनों टांगो में फंसा कर उप्पर तक चढ़ा लेता तो मुझे जो सुख की अनुभूति होती वो शानदार होती।
लेकिन अभी तक जो बात में करना चाहता था वो नही हुई थी में किसी भी चूत के साक्षात् दर्शन नही कर पाया था ,मेने पेशाब करती कई ओरतो को देखने की कोशिश की लेकिन चूत नही देख पाया था।झांटो में छुपी उनकी चूत मेरी उत्सुकता को और बड़ा देती थी।मेरे मन में यही चलता रहता था की आखिर चूत होती केसी हे जिसका नाम जुबान पर आते ही लंड खड़ा हो जाता हे और मन हिलोरे लेने लगता हे। वरुण की इतनी बाते सुन ने सुन ने के बाद भी मॉम के प्रति रेस्पेक्ट में ,मेरे मन में कोई कमी नही आयी थी और जूही के प्रति भी बहन वाला प्यार बरक़रार था।
अब मेरे दिमाग में तो एक ही बात चल रही थी की किसी तरह किसी की भी पास से चूत देखनी हे।